THE FACT ABOUT राजनीति विज्ञान THAT NO ONE IS SUGGESTING

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वास्तव में, बरनी ने अपनी पुस्तक को वहाँ से लिखना शुरु किया था, जहाँ से मिनहाज-उस-सिराज ने तबकाते-ए-नासिरी को छोड दिया था। इस प्रकार तारीख-ए-फिरोजशाही संभवतः तबकात-ए-नासिरी का उत्तर भाग है। यद्यपि इस ग्रंथ में तिथि संबंधी दोष और धार्मिक पूर्वाग्रह है, किंतु अपने दोषों के बावजूद यह एक अमूल्य ऐतिहासिक कृति है। तारीख-ए-फिरोजशाही का हिंदी अनुवाद डॉ. रिजवी ने किया है।

सकल घरेलू उत्पाद के अनुसार देशों की सूची (नाममात्र)

प्राचीन भारत का इतिहास पाषाण युग से लेकर इस्लामी आक्रमणों तक है। इस्लामी आक्रमण के बाद भारत में मध्यकालीन भारत की शरुआत हो जाती है। प्राचीन भारतीय इतिहास का घटनाक्रम

इस ग्रंथ में भारत की राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति के बारे में सुन्दर वर्णन मिलता है। प्रकृति-प्रेमी होने के कारण बाबर ने इसमें तत्कालीन फल-फूल, भोजन, रहन-सहन का स्तर, नदी-नालों आदि के सम्बन्ध में भी विस्तृत वर्णन किया है। इस ग्रंथ से भारत तथा मध्य एशिया के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। हुमायूंनामा[संपादित करें]

उत्तरी भारत के मैदान के दक्षिण का पूरा भाग एक विस्तृत पठार है जो दुनिया के सबसे पुराने स्थल खंड का अवशेष है और मुख्यत: कड़ी तथा दानेदार कायांतरित चट्टानों से बना है। पठार तीन ओर पहाड़ी श्रेणियों से घिरा है। उत्तर में विंध्याचल तथा सतपुड़ा की पहाड़ियाँ हैं, जिनके बीच नर्मदा नदी पश्चिम की ओर बहती है। नर्मदा घाटी के उत्तर विंध्याचल प्रपाती ढाल बनाता है। सतपुड़ा की पर्वतश्रेणी उत्तर भारत को दक्षिण भारत से अलग करती है और पूर्व की ओर महादेव पहाड़ी तथा मैकाल पहाड़ी के नाम से जानी जाती है। सतपुड़ा के दक्षिण अजंता की पहाड़ियाँ हैं। प्रायद्वीप के पश्चिमी किनारे पर पश्चिमी घाट और पूर्वी किनारे पर पूर्वी घाट नामक पहाडियाँ हैं।

हूणों का आक्रमण और गुप्त साम्राज्य का अंत

अमिताभ कांत (२००२) • भारतीय पर्यटन विभाग

परंतु जब भारतीय पुरातात्विक विभाग ने इस घाटी की खुदाई की थी तब उन्हें दो पुराने शहर के बारे में पता चला था। मोहनजोदाड़ो हड़प्पा

कोणार्क-चक्र - १३वीं शताब्दी में बने उड़ीसा के सूर्य मन्दिर में स्थित, यह दुनिया के सब से प्रसिद्घ ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। आधुनिक भारत

मध्यकाल के आरंभ में कई लेखकों ने द्रविड़ get more info भाषा में भी अपनी रचनाएँ लिखीं। कन्नड का सर्वप्रथम उपलब्ध ग्रंथ नृपतुंग की रचना ‘कविराजमार्ग’ है। चंपू शैली में लिखा हुआ यह रीतिग्रंथ मुख्यतया दंडी के काव्यादर्श पर आधरित है। पम्प ने ‘आदिपुराण’ लिखा, जिसमें प्रथम जैन तीर्थंकर के जीवन का वर्णन है। पम्प की एक अन्य पौराणिक रचना महाभारत पर आधारित ‘विक्रमार्जुनविजय’ भी है। पोन्न ने अपने ‘शांतिपुराण’ में सोलहवें जैन तीर्थंकर के संबंध में लिखा है। पम्प और पोन्न के समकालीन रन्न ने भी कन्नड़ में ‘अजितपुराण’ और ‘गदायुद्ध’ लिखा। कंबन ने तमिल भाषा में ‘रामायण’ लिखी। इस काल में अलवार और नयनार संतों के भजनों का भी लेखन हुआ, जो ‘दिव्यप्रबंधम्’ में संकलित हैं।

एन. डे के अनुसार, ‘‘अपने दोषों के बाद भी यह पुस्तक तत्कालीन संस्थाओं के अध् ययन का मुख्य स्रोत है।’’ फतवा-ए-जहांदारी[संपादित करें]

सल्तनतकालीन ऐतिहासिक ग्रंथों से राजनैतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। ये ग्रंथ अरबी तथा फारसी भाषा में लिखे गये थे। कुछ सुल्तानों ने अपने जीवन का वर्णन अपने द्वारा रचित ग्रंथों में किया है। ये ग्रंथ ऐतिहासिक जानकारी के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। सल्तनतकालीन ग्रंथ निम्नलिखित हैं- चचनामा[संपादित करें]

एन. डी के अनुसार, ‘‘यद्यपि पुस्तक की शैली अत्यधिक कलात्मक और अलंकृत है, पर इसमें वर्णित सामान्य तथ्य साधारणतः सत्य है।’’ तबकात-ए-नासिरी[संपादित करें]

गौतम बुद्ध का जन्म (बौद्ध धर्म के संस्थापक)

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